विवाह का शुभ संयोग कब बनता है ? | When does Auspicious Marriage Happen?

विवाह का शुभ संयोग कब बनता है ? | When does Auspicious Marriage Happen? by Akshay Rajput

By Akshay Rajput

शुभम !!

अक्सर बच्चों के बड़े होने पर उनके माता-पिता उनकी शादी के लिए चिंतित होते हैं कि बच्चों की शादी कब होगी। विशेष तौर पर हिंदू धर्म में शादी को लेकर ज्योतिष, ग्रह और कुंडली का खासा महत्व है। जन्मकुंडली में ग्रहों के अच्छे योग होने पर जल्दी विवाह की उम्मीद रहती है जबकि विवाह से सम्बन्धित भाव एवं ग्रह पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव होने पर शादी देर से हो सकती है। 

आइये जानते हे की जन्म कुंडली में  वैदिक ज्योतिष के अनुसार विवाह योग कैसे देख सकते हे ?

  • विवाह समय निर्धारण के लिये सबसे पहले जन्म कुंडली में विवाह के योग देखे जाते हैं। यदि जन्म कुंडली में विवाह के योग नहीं होंगे तो शादी होना असंभव है। जन्म कुण्डली में जब अशुभ या पापी ग्रह सप्तम भाव, सप्तमेश (७ वे स्थान का अधिपति), शुक्र, गुरु से संबन्ध बनाते हैं तो वे ग्रह विवाह में विलम्ब का कारण बनते हैं। इसके विपरीत यदि शुभ ग्रहों का प्रभाव सप्तम भाव, सप्तमेष (७ वे स्थान का मालिक), शुक्र, गुरु पर पड़ता हो तो शादी जल्द होती है। 
  • आज के युग में, एक पुरुष और स्री की कुंडली में दोनों के बीच शारीरिक और मानसिक भावनाओं के बीच संबंध देखना बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है। इसके लिए, यह देखना अधिक उचित है दोनों कि कुंडली में शुक्र (भावनाओं का कारण), चंद्रमा (मन का कारण) और मंगल (रक्त / आवेग का कारण) एक दूसरे से कैसे संबंधित हैं।
  • शादी होने में दशा का योगदान भी काफी महत्वपूर्ण होता है। सप्तमेश की दशा – अंतरदशा में विवाह- यदि जन्म कुण्डली में विवाह के योग की संभावनाएं बनती हों, और सप्तमेश की दशा चल रही हो और उसका संबंध शुक्र, गुरु ग्रह से स्थापित हो जाय तो जातक का विवाह होता है। इसके साथ ही यदि सप्तमेश का द्वितीयेश के साथ संबंध बन रहा हो तो उस स्थिति में भी विवाह होता है।
  • लग्नेश (१ वे भाव का अधिपति ) और सप्तमेश (७ वे स्थान का अधिपति) इन दोनों का संबंध पंचमेश (५ वे भाव का अधिपति) से बनता हो तो प्रेम विवाह होने की संभावनाएं बनती है।

सप्तम भाव में स्थित ग्रह या सप्तमेश जब शुभ भाव में, अपने मित्र राशि के घर में बैठे हों और उन पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो वे अपनी दशा के प्रारंभिक अवस्था में ही जातक की शादी करा देते हैं। इसके विपरित यदि सप्तमेश और सप्तम भाव में स्थित ग्रह अशुभ भाव में बैठे हों, अपनी शत्रु राशि में हों और उन पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव हो तो वे अपनी दशा के मध्य में जातक की शादी कराते हैं।

 इसके अलावा कुंडली में ग्रहों की स्थिति, दृष्टि, युति से बनने वाले योग भी जातक के विवाह होने की संभावनाएं बनाते हैं: शादी में शुक्र का महत्वपूर्ण स्थान है। जब शुक्र शुभ स्थित होकर किसी व्यक्ति की कुण्डली में शुभ ग्रह की राशि  तथा शुभ भाव (केन्द्र, त्रिकोण) में स्थित हो, और शुक्र की अन्तर्दश या प्रत्यन्तर्दशा  जब आती है तो उस समय विवाह हो सकता है।

  • कुण्डली में शुक्र का शुभ होना वैवाहिक जीवन की शुभता को बढ़ाता है। कुंडली में शुक्र जितना ही शुभ होगा व्यक्ति का वैवाहिक जीवन उतना ही सुखमय होगा। ऐसे ही बाकि सब ग्रह का वैवाहिक जीवन पर क्या असर होता हे ये जान ने के लिए मेरा द्वारा लिखा गया और एक आर्टिकल पढ़ना चुकिएगा मत।

शुभम ।

10 Replies to “विवाह का शुभ संयोग कब बनता है ? | When does Auspicious Marriage Happen?

  1. Shubham🙏
    Thank you Aksaysir for sharing important
    Knowledge. i hop u will share your knowledge by article 🙏🙏

  2. Awesome Akshaybhai,
    ખૂબ જ મહત્વની અને વિસ્તાર પૂર્વક માહિતી આપી છે
    ખૂબ ખૂબ અભિનંદન

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