शुभम,
एक बार एक मित्र की शादी का न्योता आया। सुबह 10:25 का मुहूर्त था। दस बजे जब में पहुंची तो पाया बहुत से मेहमान आ चुके थे। एक दूसरे से मिलना-जुलना, संगीत-समारोह, खान-पान में कब मुहूर्त का समय बीत गया पता ही नहीं चला। और 12 बजे के करीब घोषित किया गया की सात फेरे और हस्त मिलाप हो चुका है और विवाह सम्पन्न हुआ है। ऐसा ही एक दूसरा किस्सा , एक दुकान का उद्घाटन था। शाम 5:00 बजे का मुहूर्त पंडितजी से निकलवाया था। लेकिन मेहमानों की राह देखनी भी जरूरी थी, कोई ट्राफिक में थे तो कोई ऑफिस से निकल रहे थे। इसी चक्कर में कब मुहूर्त का समय निकल गया पता ही नहीं चला।
ऐसे किस्से आपने भी देखे होंगे। मन में सवाल यह उठता है की, ऐसी परिस्थितियों में मुहूर्त निकलवाने का अर्थ क्या? अगर हमें उस समय का उपयोग ही नहीं करना तो फिर पंडित जी को इतना कष्ट क्यों देना है। क्या सिर्फ हमारी सदियों से चली आ रही परंपरा है इसी लिए हम ये समय यानी की मुहूर्त निकालते है? या फिर इस की कोई और वजह भी है? क्या ये आवश्यक है शुभ कार्य के लिए मुहूर्त निकालना? आइए आज इस कोसमोगुरु के मंच पर थोड़ी चर्चा इस विषय पर कर ले।
हमारी इस सृष्टि में समय का एक विशेष और असाधारण महत्व है। कोई भी घटना एक निश्चित समय पर ही होती है, समय से पहले या समय के बाद नहीं, ये सृष्टि का नियम है। एक पौराणिक कथा अनुसार हिरण्यकश्यपू राक्षस ने खुद को अमर बनाने के लिए भगवान से एक वर मांगा था, जिस अनुसार कोई भी, देव, दानव, मानव या पशु से, या फिर कोई भी शस्त्र से या फिर घर के अंदर या बाहर, दिन या रात में उसकी मृत्यु नहीं हो सकती थी, ऐसा वर मांगने में उसने बहुत सारी शक्यताओ का विचार किया होगा। किन्तु उसका वध करने के लिए भगवान विष्णु ने नरसिंहा अवतार धारण किया और दिन और रात के बीच का समय यानी संध्याकाल का समय चुना। हिरण्यकश्यपू ने काल ज्ञान का सही उपयोग नहीं किया, उसने संध्याकाल का समय भी वर में मांग लिया होता तो……. समय का सटीक उपयोग करके ही हिरण्यकश्यपू का वध किया गया। असुरी शक्ति का विनाश या फिर कोई शुभारंभ , सभी में समय का ज्ञान होना अत्यंत आवश्यक है।
सृष्टि में सूर्योदय और सूर्यास्त, दिन मान और वर्ष काल, दक्षिणायन और उत्तरायण से लेकर सारे ग्रहों की गति, ब्रह्मांड में होने वाली सभी घटनाएं एक विशिष्ट गाणीतिक समय से जुड़ी हुई हे। मनुष्य से जुड़े हुए कार्य को अगर कुदरत का साथ मिले तो वह कार्य सहजता से पूर्ण होंगे। इसी उद्देश्य से हमारे ऋषि ओ ने कुदरत के गणित और नियमो का अभ्यास करके मनुष्य के कार्य और उसके लिए योग्य समय इसकी एक नियमावली बनाई। योग्य समय यानी की सुमुहूर्त और प्रतिकूल समय यानी की दुमुहूर्त। हम जो कार्य करना चाहते हे वह निरविघ्नता से पूर्ण होने के लिए कार्य शुरू करने का एक योग्य समय निश्चित किया जाता हे। इस योग्य समय को मुहूर्त कहते हे। ऐसा योग्य समय चुनने के लिए बहुत सारी अनुकूल चीजों का विचार किया जाता हे। जैसे की विशिष्ट वर्ष में विशिष्ट महिना, तिथि, वार, नक्षत्र, योग, करण और उस समय की ग्रह परिस्थिति इन सभी का विचार करके जो शुभ समय निकाला जाए वही शुभ मुहूर्त। अगर इस शुभ मुहूर्त पर कार्य को आरंभ किया जाए तो कार्य में सफलता मिलना सुनिश्चित है। अगर हम ऐसा नहीं करते है तो उस शुभ समय का उस व्यक्ति को कोई फायदा नहीं होता और जिस समय कार्य को आरंभ किया जाए वह समय शुभ ही हो यह शक्य नहीं है।
हर एक कार्य के लिए हमारे शास्त्रों में मुहूर्त दिए हुए हे, जो मुहूर्त जिस कार्य के लिए उपयुक्त हो उसी में उसका उपयोग करना चाहिए। गुड़ी पाड़वा, अक्षय तृतीया, विजयादशमी और बलीप्रतिपदा ये सर्वमान्य मुहूर्त है फिर भी विवाह के लिए उपयुक्त नहीं हे क्योंकि कोई भी कार्य शुभ होने के बावजूद उसका अपना महत्व, संकेत और शुभत्व है। इस तरह विशिष्ट कार्य के लिए विशिष्ट समय को निश्चित करने के लिए मुहूर्त शास्त्र का निर्माण किया गया। हमारे हिन्दू धर्म में सोलह प्रकार के संस्कारों का वर्णन है, और यह प्रत्येक संस्कार किसी ना किसी विशिष्ट मुहूर्त पर किए जाते है।
इन सभी बातों का विचार करते हुए ये हम स्पष्ट रूप से देख सकते है की मुहूर्त किसी भी कार्य को अच्छी तरीके से पूर्ण करने के लिए जरूरी है। अगर हम मुहूर्त के समय का पालन करते है तो हमारा कार्य निर्विघ्न रूप से पूर्ण होगा ही। यानी हमारे ऋषि ने सफलता की चाबी पहले से ही हमें दे दि है, अब हम उसे उपयोग में ना ले तो हमसे दुर्दैवी और कोन होगा……
अगर आपको कुछ ऐसे ही विषयों पर ओर रोचक जानकारी चाहिए तो कमेन्ट करना ना भूले, फिर से मिलूँगी कोई ऐसा ही विषय ले कर कोसमोगुरु के मंच पर. अस्तु।
शुभम।
Very precise information
Shubham 🙏🙏
Good lekh
Good information
Shubham 🙏
Meaning ful muhurt ….
Explain excellent..