प्रेम शब्द को सब अच्छे से जानते है | प्रेम किसी वस्तु या फिर व्यक्ति के प्रति रहता है | प्रेम के अलग अलग प्रकार होते है | यहाँ हम बात कर रहे है स्त्री और पुरुष के बीच का प्रेम | बात करेंगे प्रेम विवाह के कुंडली में योग के बारे में |
‘विवाह‘ हमारे षोड़श(16) संस्कारो में से एक है | इस संस्कार में स्त्री और पुरुष सामाजिक तौर से, नियमानुसार एक दूसरे से जुड़ते है | विवाह का सर्वोपरि उद्देश्य है संतान प्राप्ति, वंश वृद्धि और सामाजिक अनुशासन | यह संस्कार में नर – नारी एक सूत्र में बँध जाते है | जीवनभर एक दूसरे का साथ सहकार का आदान – प्रदान करते है |
‘गन्धर्व विवाह ‘ सब ने नाम सूना होगा | जब कन्या और वर स्वेच्छा पूर्वक एक दूसरे का स्वीकार करते है या एक दूसरे को प्रेम करते है तो इनका विवाह गन्धर्व विवाह कहते है | इस विवाह में केवल कन्या और वर की अनुमति होती है | आदि काल से यह विवाह चला आ रहा है | और आज के समय में यह विवाह का चलन बढ़ गया है |
आज यहाँ हम प्रेम विवाह के योग जन्म कुंडली में कैसे बनते है उसकी बात करेंगे | किसी की तरफ आकर्षण होना और प्रेम होना दोनों में काफी अंतर है | बहोत सारे लोग प्रेम करते है किन्तु सब का प्रेम विवाह संस्कार में परिवर्तित नहीं हो पता है | यह बिलकुल सही है की प्रेम की शुरुआत आकर्षण से ही होती है , लकिन किन किन के बीच आकर्षण होगा यह सब ग्रहों की दें है | जन्म कुंडली के पारस्परिक ग्रहो की स्थिति के अनुसार इसे समजा जा सकता है |
चलिए देखते है कि कैसे ग्रहो की स्थिति से प्रेम विवाह संभव होता है | किन चीजों की वजह से प्रेम , विवाह तक नहीं पहुँचता |
प्रेम विवाह में जिसकी मुख्य भूमिका है वह है चंद्र , शुक्र और मंगल |
चंद्र , शुक्र और मंगल का सम्बन्ध प्रेम विवाह की तरफ ईशारा करता है | इन तीनो में से दो की या तीन की युति, प्रति युति या किसी भी तरह का सम्बन्ध बनाते है तो प्रेम विवाह की संभावना बढ़ जाती है |
विवाह के लिए लग्नेश और सप्तमेष का सम्बन्ध आवश्यक है | और यदि लग्नेश और सप्तमेश के साथ पंचमेश का सम्ब्नध भी बनता है तो यह प्रेम विवाह होने की संभावना बढ़ा देता है | और इनका विवाहित जीवन बहोत मधुर होता है |
प्रेम विवाह के लिए मंगल का मजबूत होना भी बेहद जरूरी है | प्रेम विवाह करने के लिए हिम्मत , साहस चाहिए और वह मंगल ही प्रदान कर सकता है |
चंद्र , शुक्र या मंगल कन्या की कुंडली में जिस राशि में बैठा है उस ही राशि में यदि पुरुष की कुंडली में उसी राशि में चंद्र , शुक्र या मंगल बिराजमान है तो उनके बीच आकर्षण रहता है और प्रेम विवाह कर सकते है |
चतुर्थ स्थान में शुक्र प्रेम विवाह करवाता है |
शुक्र मंगल , शुक्र राहु , शुक्र शनि की युति भी प्रेम विवाह करवा सकती है |
किन्तु शुक्र कमजोर हो और पाप ग्रह से सम्बंधित हो तो प्रेम अधूरा रहता है , विवाह में परिवर्तित नहीं होता है |
यदि यह ग्रह एकदूसरे की कुंडली में एक ही भाव में बिराजमान हो तो भी यह बात बन सकती है |
जैसे की कन्या की कुंडली में तुला राशि में शुक्र है और वर की कुंडली में तुला का मंगल है | या फिर कन्या में चतुर्थ भाव में शुक्र और वर के चतुर्थ भाव में मंगल।
लग्नेश – पंचमेश और सप्तमेश के साथ या पहले, सातवे -और पांचवे भाव में सम्बन्ध होने से और उन्ह पर शुभ ग्रहों का प्रभाव होने से प्रेम, विवाह में परिवर्तित हो सकता है |
यदि सिर्फ अशुभ ग्रहों का प्रभाव हो तो प्रेम कम और काम और आकर्षण ज्यादा होता है , ऐसी स्थिति में विवाह हो नहीं पाता |
पंचम स्थान यदि दूषित है तो मनचाहा प्रेम नहीं मिलता है |
सप्तमेश या शुक्र गुरु से दृष्टित है तो भी अच्छा जीवनसाथी मिलता है |
ज्यादातर शुक्र , चंद्र और मंगल की स्थिति से प्रेम विवाह के बारे में बताया जा सकता है |
वैसे तो बहोत कुछ देखना रहता है हर एक कार्य में सभी ग्रहों की हिस्सेदारी रहती है |
|| शुभम ||
यदि आपको जानना है आप का प्रेम विवाह होगा की नहीं तो आप हमसे CosmoCall पे बात कर सकते है।
Nicely explained