विध्याअभ्यास और ज्योतिष
मानव जीवन के सम्पूर्ण विकास के लिए शिक्षा अत्यंत आवश्यक होती है। आजके समय मे अभ्यास का बहोत महत्व है। उच्च अभ्यास बिना अपनी पसंदगी का करियर के चुनाव मे गफलत हो सकती है। देश २१मी सदी की तरफ कदम बढ़ा रहा है तब मेरे अनुसार जब एक शिक्षक सभी विषय पर पारंगत नही हो सकता तो एक विधयार्थी कैसे सभी विषयों मे पारंगत हो सकता है?
यह लेख केवल ऐसे माता पिता के लिये है जिनको अपने संतान से बहोत सारी अपेक्षायेँ है। उनको ये जरूर जानना चाहिए की उनके प्रारब्ध मे क्या लिखा है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब प्रारब्ध और पुरुषार्थ का संयोजन होगा तभी मनचाहा परिणाम मिलता है। यह लेख मे ज्योतिषशास्त्र द्वारा प्रमाणभूत सिद्धांत से आपके संतान का विध्याअभ्यास कैसा रहेगा वो देखेंगे।
जन्म कुंडली मे द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, नवम, और ग्यारवे भाव से विध्याअभ्यास के बारे मे विश्लेषण करना हो। जैसे :-
- द्वितीय भाव – प्रारंभिक शिक्षा, वाणी
- चतुर्थ भाव – मूलभूत शिक्षण
- पंचम भाव – आँकलन शक्ति, होशियारी, स्मरण शक्ति
- नवम भाव – उच्च अभ्यास
- ग्यारवा भाव – अभ्यास की इच्छा पूर्ति
विध्याअभ्यास के लिए कुंडली मे कारक ग्रह बुध और गुरु है।
अभ्यास हेतु समय सदैव परिवर्तनशील रहा है। पहले के समय मे विषय काम हुआ करते थे विज्ञान के आविष्कारों ने विज्ञान के अलावा अन्य विषयों को भी बढ़ा दिया है। इसलिए कुंडली के बलवान ग्रह के अनुसार जातक को कौनसे क्षेत्र के अभ्यास मे जाना चाहिए वो जानने के लिए नीचे हरेक ग्रह के अनुसार क्षेत्र के विषय बाँट दिया गया है।
- सूर्य – डॉक्टर, सरकारी कार्य, राजकीय विज्ञान, सत्ता
- चंद्र – लेखक, नर्सिंग, होम सायन्स, दवा रसायन, मनोविज्ञान, बैंकिंग
- मंगल – प्राकृतिक ज्ञान, अवकाश विज्ञान, सर्जन, केमिकल, माइनिंग,
- बुध – व्यावहारिक ज्ञान, गणित, अकाउंट, कंप्युटर, आँकलाशास्त्र
- गुरु – सांस्कृतिक ज्ञान, भाषाशास्त्र, शिक्षक, उच्च अभ्यास
- शुक्र – व्यावसायिक ज्ञान, वकील, आर्किटेक, डॉक्टर, फेशन डिज़ाइनर, होटल मेनेजमेंट
- शनि – सामाजिक ज्ञान, मशीनरी, पुरातत्व, राजकारण, इन्श्योरेन्स
जब कुंडली मे जो ग्रह बलवान है उसके हिसाब से अभ्यास के अलग अलग तरह के क्षेत्र का विचार किया जा सकता है। साथ ही अभ्यास के समय कुंडली मे चल रही महादशा भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। विधयार्थीओ के बहेतर भविष्य के लिए मन और बुद्धि दोनों के समन्वय की जरूरत है। इसलिए कुंडली मे चंद्र और बुध का बलवान होना भी आवश्यक है।
मेरे पास बहोत से मातापिता अपने संतान की कुंडली दिखाने आते है और फ़रियाद करते है की बच्चा पढ़ाई मे होशियार है परंतु परीक्षा के डर से उसके आत्मविश्वास मे कमी आती है और उसकी अथाग महेनत के बावजूद वह अच्छे अंकों से उत्तीर्ण नही होता और वो ये भी फ़रियाद करते है की उसको सब समझ आने के बाद भी परीक्षा मे याद नही आता। वैसे मैंने दो तरह के मातापिता देखे है – १) जिनको कुछ पता नही की बच्चा क्या और कैसे पढ़ाई करता है वो तो बच्चे को ट्यूशन करवा के अपना फर्ज पूरा करते है।
२) जो बच्चे के पीछे पड़ जाते है की गणित या साइन्स की पढ़ाई कर आदि।
ऐसे मे उसके के दिमाग मे तनाव बढ़ जाता है। ऐसे मातापिता को मेरी यही सलाह है की बच्चे को जिस विषय मे रस हो उसे पढ़ने दे क्योंकि वह अपना प्रारब्ध लेके आया है तो वो अपने मनचाहा विषय मे पुरुषार्थ करेगा तो सफलता प्राप्त कर सकेगा।
Thank you for your guidance. Excellent job
Very informative 👌