शुभम,
कुंडली मे हर घर का अपना अर्थ होता है। ये हरेक घर हमारे जीवन के विभिन्न पहलुओं का भी प्रतिनिधित्व करते है।
कुंडली के प्रथम भाव को मुख्य रूप से स्वयं का भाव कहा जाता है। क्योंकि, प्रथम भाव जातक के व्यक्तित्व को प्रदर्शित करता है। यह भाव से जातक के जीवन के विषय मे महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हो सकती है। प्रथम भाव जातक के जीवन की शुरुआत का प्रतीक है। यह भाव जातक के बचपन का बोध भी माना गया है।
जब जातक का जन्म होता है तब उस समय विशेष: आकाश मे स्थित राशि,नक्षत्र,और ग्रहों की स्थिति के प्रभाव को वह ग्रहण करता है। दूसरे शब्दों मे जन्म के समय पूर्वी क्षितिज पर जो राशि उदय होती है। वह जातक का लग्न बन जाता है। लग्न के निर्धारण के बाद ही कुंडली का निर्माण होता है।
ज्योतिष शस्त्र मे प्रथम भाव को लग्न,तनु,होरा,आदि कई नामों से जाना जाता है। प्रथम भाव जातक के शरीर और शारीरिक संरचना का प्रतिनिधित्व करता है। यह हमारे शरीर के ऊपरी हिस्से जैसे चहेरे की बनावट, नाक-नक्शा, मस्तिक, कद-काठी, को प्रगट करता है। यही नही, कुंडली के प्रथम भाव से जातक के लक्षण, व्यक्तित्व, आचार, विचार, व्यवहार, आत्मविश्वास, अहंकार, का भी विचार किया जाता है।
जन्म कुंडली का विश्लेषण करने के लिए सर्व प्रथम लग्न भाव यानि की कुंडली के प्रथम भाव का विश्लेषण भली – भाँति कर लेना चाहिए। क्योंकि, कुंडली के अन्य बारह भाव भी प्रथम भाव से और जातक से जुड़े हुए होते है। इसलिए प्रथम भाव को जाँचने परखने के बाद ही आगे बढ़ना चाहिए।
प्रथम भाव के कारक ग्रह सूर्य है। इसलिए वह भाव से जातक के मान सम्मान, सुख, और यश–प्रतिष्ठा को दर्शाता है। यानि नाम – प्रसिद्धि और सामाजिक प्रतिष्ठा का विचार भी लग्न से किया जाता है।
यह लेख से आप जान गए होंगे की अपनी कुंडली के प्रथम भाव की क्या अहमियत है। आप अपनी कुंडली मे स्थित प्रथम भाव मे बिराजमान राशि के आंकलन करके अपने बारे मे काफी कुछ जान सकते हो।
A great article from Sarika Mehta. I really benefitted by reading this. Thanks a lot Cosmoguru.