ग्रहण – सूर्य ग्रहण, चंद्र ग्रहण – Eclipse

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By Minal Jog

||शुभम|| 

बचपन से ही हम ग्रहण शब्द को सुनते आए है। हमारे बड़े बुजुर्ग हमेशा कहा करते है, ग्रहण अशुभ होता है और इसमें कुछ नियमों का पालन करना बहुत जरूरी है। पर ऐसा क्यों? इस प्रश्न को वह सही ढंग से समझा नहीं पाते थे।

जैसे-जैसे बड़े होते गए तो पौराणिक कथाओं में भी ग्रहण शब्द का उल्लेख पढ़ा। इस खगोलीय घटना का उल्लेख हमारे वेदों में देव और दानव के रूपकों में मिलता है। एक बहुत प्रचलित कथा के अनुसार एक बार देव और दानवों के बीच युद्ध हुआ, जिसमे समुद्र मंथन के दौरान 14 रत्नों की प्राप्ति हुई जिसमे एक अमृत कलश भी था। इस अमृत को पीने के लिए फिर से देव और दानवों में बहस हुई, और उसको सुलझाने के लिए विष्णु भगवान ने एक माया रची। उन्हें ये अमृत देवताओ को ही पिलाना था , इसी लिए उन्होंने मोहिनी का रूप लिया। जिससे सारे दानव उन पर मोहित हो कर अमृत की बात भूल गए, और विष्णु भगवान देवो को अमृत बांटने लगे। सभी दानवों में से एक दानव को ये बात समज में आ गई और वो देवो का स्वरूप लेकर उनमे अमृत पीने के लिए शामिल हो गया। जैसे ही उसकी बारी आई तभी देवताओ में बैठे सूर्य और चंद्र ने उसे पहचान लिया और विष्णु भगवान को उसकी असलियत बता दि। तब तक अमृत की दो तीन बुँदे उसके मुह में चली गई थी, तभी भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। अमृत की वजह से उसकी मृत्यु नहीं हुई किन्तु सिर राहु के नाम से और धड़ केतु के नाम से जाना गया। इसी वजह से राहू और केतु सूर्य और चंद्रमा को अपना शत्रु मानते हैं। पूर्णिमा और अमावस्या के दिन राहु, सूर्य और चंद्रमा को ग्रहण से शापित करते हैं। पूर्णिमा को चंद्र ग्रहण और अमावस्या के दिन सूर्य ग्रहण लगता है। ऐसी ये पौराणिक कथा है, किन्तु क्या हर पूर्णिमा और अमावस्या को सूर्य और चंद्र को ग्रहण लगता है?………… नहि………

इसे समझने के लिए आइए अब ग्रहण को खगोलीय द्रष्टिकोण से जानने का प्रयास करते है।

ग्रहण ये एक बहुत ही सामान्य खगोलीय घटना है, जो हमारे सौर्य मंडल के मुख्य ग्रह सूर्य, पृथ्वी और उसके उपग्रह चंद्र से जुड़ी हुई है। ग्रहण मुख्यत: दो प्रकार के जाने जाते है, एक सूर्य ग्रहण और दूसरा चंद्र ग्रहण। हम सभी जानते है की अपनी पृथ्वी, सूर्य के आसपास घूमती है और चंद्र पृथ्वी के आसपास घूमता है। जब ये तीनों परिभ्रमण करते हुए एक सीधी रेखा मे आते है तब ग्रहण की परिस्थिति बनती है।

अगर सूर्य व पृथ्वी के बीच में चंद्र आ जाता है तो चंद्र के पीछे सूर्य का बिम्ब कुछ समय के लिए ढक जाता है, इसी घटना को सूर्य ग्रहण कहा जाता है।

अगर सूर्य और चंद्र के बीच में पृथ्वी आ जाती है तो कुछ समय के लिए चंद्र ठीक पृथ्वी के पीछे उसकी परछाई में आ जाता है, जिसे हम चंद्र ग्रहण कहते है।

इसका मतलब यह हुआ की जब सूर्य, चंद्र और पृथ्वी एक सीधी रेखा में है और अमावस्या है तो सूर्य ग्रहण होता है और गर जो पूर्णिमा हो तो चंद्र ग्रहण होता है। इस तरह खगोल  की मदद से हम ग्रहण को अच्छी तरह से समज सकते है।

अब आइए थोड़ा विचार करते है, ग्रहण से जुड़ी मान्यता ओ पर…….जैसे की ग्रहण के समय, कुछ खाना नहीं चाहिए, पानि भी नहीं पिना चाहिए, ग्रहण से पूर्व और पश्चात स्नान करना चाहिए, गर्भवती महिलाओ को ग्रहण में बाहर नहीं निकलना चाहिए, ग्रहण को हमे अपनी नरी आँखोंसे देखना नहीं चाहिए। क्यों?…….

ग्रहण के दौरान, पृथ्वी की सतह पर आ रही प्रकाश की किरणों की तरंगलंबाई और तीव्रता में परिवर्तन आ जाता है। विशेष रूप से, ब्ल्यू और अल्ट्रावायोलेट विकिरण, जो प्राकृतिक रूपसे कीटाणुओ को रोक सकती है, ग्रहण के दौरान पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं होते हैं।

इससे ग्रहण के दौरान खाद्य पदार्थों और पानी में सूक्ष्म जीवों की अनियंत्रित वृद्धि हो सकती है और ये उपभोग के लिए उपयुक्त नहीं रहते। ऐसे में अगर हम ग्रहण को नरी आँखों से देखे तो आँखों को नुकसान भी हो सकता है, और शायद इसी लिए ग्रहण जैसी खगोलीय घटना को धर्म के साथ जोड़ दिया गया हो, जिससे सभी इन नियमो का चुस्तता से पालन करे और खुद को और अपने आने वाली पीढ़ी को सुरक्षित रखे। अस्तु।